कहानी त्रासदी की
एक बहुत विशाल वटवृक्ष था , बहुत बड़ी बड़ी शाखाएं , फिर मजबूत डालियां , करोड़ों अनगिनत हरे पत्तों से युक्त ये वटवृक्ष आस पास के सारे पेड़ों से अलग था, कमोबेश आस पास का हर पेड़ इससे ईर्ष्या करता था, इसकी हरी पत्तियों को इसके मजबूत अथाह विश्वास था, क्यूंकि तना मजबूत था और सारे खनिज लवण और पानी की पूर्ति अबाध गति से होती थी , सबका साथ था, सबका विश्वास था, फ़िर एक बार तनें में दीमक लग गई, सब शखाओं , पत्तियों ने तने से शिकायत की , तना अनसुना करता रहा क्योंकि वो दंभ में था मेरे जितना चौड़ा और बड़ा कोई नहीं इसलिए मुझे दीमक नहीं लग सकती, हक़ीक़त में ऐसा नहीं था दीमक बढ़ती जा रही थी , पहली गाज़ पत्तियों पर गिरी, आवश्यक तत्वों की कमी से सुख कर गिरने लगी, तना फिर भी बेखबर रहा , कोई शिकायत करता तो कहता , दूसरे पेड़ों को देखो उनका भी यहीं हाल है , दीमक बढ़ती जा रही थी , पत्तियों के साथ अब एक दूका छोटी डालियां भी गिर रही थी , तना फिर भी बेखबर रहा , वो अपने बाहरी आवरण पर दंभ भरता रहा, अंदर के खोखलेपन को नजरंदाज करता , अब सब शाखाओं , पत्तियों में अफरा तफरी थी , तब जाकर उसे अहसास हुआ कि पूरे पेड़ की खूबसूरती गायब हो रहीं , हर कोई आने जाने वाला पूछता क्या बात है , ये सब क्या हो रहा हैं , तना बोलता , शाखाओं की गलती हैं , पत्तियां सही तरीके से काम नहीं कर रही ..
..तना था "सिस्टम"..पत्तियां थी "जनता" और जल और खनिज लवण थे ऑक्सिजन, बेड, आईसीयू..
दीमक ..फैलता रहा , सिस्टम झूठे दंभ भरता रहा ..
न जाने कितनी पत्तियों को असमय जाना पड़ा,
..पिछले एक महीने से पूरे देश में अफरा - तफरी का माहौल है, ट्विटर, वॉट्सएप, फेसबुक, सोशल मीडिया ऑक्सिजन, प्लाज्मा, बेड, आइसीयू, आवश्यक दवाओं की जरूरत से अटा पड़ा हैं..सब बदहवास है, दुःखी हैं, कई परिवार पूर्णतया ख़तम हो गए, कई जिंदगी भर का दर्द ले गए, ये सब हमारे अपने लोग हैं, एक देश के तौर पर हम हार गए, ये 1962 के युद्ध की हार से बुरा हैं,ये हर उस हार से बुरा हैं जो हमने अपने जीवन में देखी थी.. बहुत नौजवान लोग इसका शिकार हो गए , जो आने वाले 40-50 साल देश के लिए काम करते , देश की सम्पदा थे और ऐसे लोग लाखों में हैं..सोचिए कितना बड़ा नुकसान देश को हुआ है...जिम्मेदारी किसकी थी , गलती कहां हुई, ये बहस का विषय है..हमारी अंगुलियां स्क्रीन पर एक अच्छी खबर के लिए स्क्रॉल करती रहती हैं , बहुत बड़ी संख्या में लोग उबरे भी है ..
लेकिन सबसे बड़ी बात ये है कि हमें फिर खड़ा होना होगा, एक देश के तौर पर , एक समाज के तौर पर, दीमक को कीटनाशक देनी होगी, सिस्टम को मजबूत करना होगा ..
.. गलती किसकी थी ये बाद में तय कर लेंगे
किसी भी गलती को सुधारने का पहला क़दम हैं , गलती स्वीकार करना..सिस्टम कतरा रहा हैं , हमें अहसास कराना होगा ...
हमें आगे बढ़ना होगा लेकिन उन रोते बिलखते, टूट चुके परिवारों को पीछे छोड़कर नहीं , साथ लेकर ..
सबक ये हैं
1. जिनकी इस विभीषिका में जान गई ,उनके सही सही आंकड़े जुटाएं जाएं, उनको सूचीबद्ध करके , जिन परिवारों ने अहम सदस्य ( जिस पर परिवार निर्भर था) को खोया उनका भरण पोषण , कम से कम 2-3 साल सरकार करें, बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था करें
2. अभी भी स्वास्थ्य सेवाओं में रही खामियों को दूर करें
3. देश के बहुत से लोग मानसिक तनाव और अवसाद में हैं उनकी काउंसलिंग करें
4. वैक्सिनेशन को तीव्र गति से करने के लिए आवश्यक कदम उठाएं
5 जिन परिवारों ने अपने सदस्यों को खोया है उनकी आवश्यकतानुसार मदद करें, ख़ासतौर जिन्होंने अस्पतालों में अपनी जीवन पूंजी लगा दी और अपनों को बचा भी नहीं पाएं
6. शैक्षिक क्षेत्र में बच्चों को हुए नुकसान के लिए कार्ययोजना बने
7. जिन्होंने अपनी नौकरियां खोयी है उनकी भी सुनवाई हो
एक कर्तव्यनिष्ठ नागरिक के तौर पर हमारा भी दायित्व है कि हम मानवीय तौर पर पीड़ित लोगों के साथ खड़े हो , उनकी छोटी -छोटी मदद देश के लिए बहुत बड़ा योगदान होगा..
आपदा में किसीकी मजबूरियों का फायदा ना उठाएं
उम्मीद हैं हम फिर खड़े होंगे , आगे बढ़ेंगे, उन लोगों के साथ, उन परिवारों के साथ जिन्होंने इस आपदा को झेला है ..
यूनाँ मिस्र रोमा, सब मिट गए जहां से,
बाकी मगर है अब तक, नामो निशां हमारा
कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन, दौर ए जहां हमारा
- अल्लामा इक़बाल
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