Friday, May 8, 2020

गांव की बात, किसान के साथ

#आओ_गांव_चले
#ग्रामीण_कहिन
आज दुनिया के तमाम अर्थव्यवस्थाए
, पूंजीवादी और समाजवादी वैश्विक महामारी कोरोनावायरस के जंजाल में धराशायी होती दिख रही है|
लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था मैं अभी आशाएं बाकी है, सकारात्मक आर्थिक वृद्धि की उम्मीद है (आईएमएफ के अनुसार).... और इसके लिए काम कर रहा है वो भारत , जिसको बार-बार इंडिया ने यह एहसास दिलाया था कि वह देहाती है, गंवार  है|
भारत जो अपनी मेहनत और लगन से कुछ मात्रा में ही सही , उन बड़ी इमारतों तक पहुंचा था , बड़े सचिवालयों तक पहुंचा था (हां उसको वहां भी देहाती , गंवार  और अपरिष्कृत होने का एहसास करवाया जाता है )|
ग्रामीण भारत आज सब कुछ कर रहा है ,
ट्विटर पर अंताक्षरी, फेसबुक पर विशेष तरह की प्रोफाइल पिक्चर , टिकटोक पर वीडियो बनाने और हर 2 मिनट बाद मीडिया द्वारा काम करने के एहसान जताने वाले विज्ञापनों के अलावा (जो सबसे बड़े योगदान हैं ) #व्यंग्य | आज से लगभग 40 साल पहले पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह ने कहा था " देश की प्रगति का रास्ता खेतों ,खलिहानों से होकर गुजरता है" उसके बाद उनको प्रधानमंत्री पद खोना पड़ा | उसके बाद भी लगभग हर विचारधारा की सरकार आई लेकिन किसी ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था की ओर ध्यान नहीं दिया और इसके तीन प्रमुख  कारण रहे
1. जो लोग गांव को छोड़कर शहर की ओर आगे बढ़ गए थे वह इतना आगे बढ़ गए कि उन्होंने गांव को पीछे मुड़कर नहीं देखा
2.  उद्योगपतियों और राजनेताओं की सांठगांठ ने  सब सुविधाओं को शहरों तक ही सीमित रखा ||
(जिनकी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है, मगर यह आंकड़े झूठे ,ये दावा किताबी है- अदम गोंडवी )

3. देश के उच्च सदनों में शुद्ध ग्रामीण प्रतिनिधित्व में कमी | ( वैसे भी  देश में गैर राजनीतिक परिवार से सम्बन्धित मात्र 7-8 % युवा सांसद हैं )

शायद अब वक्त आ गया है , हमें 5 ट्रिलियन डॉलर वाली ख्याली अर्थव्यवस्था  के बजाय विकेंद्रीकृत विकास और समान ग्रामीण विकास की तरफ सोचना होगा || ( जो अगर पहले से किया गया होता तो आज 50% से ज्यादा उद्योग खुले होते और अर्थव्यवस्था स्थिर रहती)
जिसका एक छोटा सा प्रतिरूप , कुछ दिन पहले आरबीआई के गवर्नर की घोषणा  है जिसमें 50 हजार करोड़ रुपए सिडबी और नाबार्ड जैसी संस्थाओं को दिए गए हैं ||
#आशान्वित_ग्रामीण

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