#पुनः_स्मरण
#किसान_अधिकार_समर्थन
जीडीपी में नकारात्मक वृद्धि या यूं कहे -23.9% ह्रास में निसंदेह कोरोना और लॉकडाउन की भूमिका रही हैं |
और ये वो दौर था जब देश में लगभग सम्पूर्ण लॉकडॉउन था सब उद्योग धंधे बंद थे , लेकिन एक व्यक्ति नहीं रुका, नहीं थका था | किसान और परिणाम देखिए , कृषि विकास दर 3.4% रही (सकारात्मक), लेकिन नींव की ईंट को कौन देखता है साहब , लोग तो बस इमारत के कंगुरों की तारीफ़ करते हैं ||
लेकिन हकीकत यही है कंगुरे अस्थाई हैं, दिखावटी है, कभी भी धराशायी हो सकते हैं | हुए भी है 35.35 लाख करोड़ से सीधे 26.90 लाख करोड़ ....
कुछ स्वघोषित अर्थशास्त्री लोगों ने बोला की जान ज्यादा कीमती थी , जान हैं तो जहान है , बिल्कुल कीमती हैं पर क्या उन किसानों की जान कि कीमत नहीं जो आर्थिक कर्जे में डूब कर आत्महत्या जैसा कदम उठाते हैं
तीन साल बाद ( नवंबर 2019 में) ,2016 के किसानों की आत्महत्या का रिकॉर्ड आया और 11,379 आत्महत्याएं दर्ज की गई ये सरकारी आंकड़े थे , सोचिए वास्तविक संख्या कितनी बड़ी होगी | और पिछले कुछ सालों में संख्या बढ़ी है कम नहीं हुई ...
सोचने का विषय यह है इन सब के बावजूद और ऐसी विपरीत परिस्थितियों में भी वो लोग देश के लिए जुटे रहते हैं और ये सब प्रत्यक्ष है इन जीडीपी के आंकड़ों में, ऐसे में हमारी जिम्मेदारी है हम देश के किसानों ना केवल सम्मान करें बल्कि आर्थिक रूप से भी उनका सहयोग करें , उनकी उपज को सीधा खरीद कर, उनके उत्पादों का प्रचार कर ||
क्यूंकि जिस दिन ये नींव ढह गई , फ़िर कंगुरो को जमीदोंज होने में वक्त नहीं लगेगा ||
#जिये_किसान_जिये_जवान
#आत्मनिर्भर_हिंदुस्तान
#जागृत_हिंदुस्तान